भगवान परशुराम जी, महर्षि भृगु के वंशज और महर्षि जमदग्नि के पुत्र, का जन्म इसी पवित्र स्थली पर हुआ था। सत्ययुग से ही यह आश्रम एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में पूजनीय रहा है। लगभग 95 लाख वर्षों से इस आश्रम में भगवान परशुराम जी का निवास रहा, जहाँ सदैव हवन और यज्ञ होते रहे हैं। पृथ्वी मंडल के अनेक साधु-संतों ने इस आश्रम में रहकर भगवान परशुराम जी से धर्म-शिक्षा प्राप्त की।
द्वापर युग में भगवान परशुराम जी ने कई राजवंशों के राजाओं को शस्त्र विद्याओं की शिक्षा इसी स्थान पर दी। इसी पवित्र स्थल पर माता कामधेनु का अपहरण माहिष्मती नगरी के राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन द्वारा कर लिया गया था। इसके बाद राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी।
इस घटना से भगवान परशुराम का क्रोध भड़क उठा। उन्होंने दुराचारी, अधर्मी राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन तथा उसके हैह वंश का 21 बार पृथ्वी से विनाश कर दिया। इसके बाद आश्रम की पुनः स्थापना की गई।
मुगल काल के दौरान जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी ने इसी आश्रम से भारत वर्ष के बावन अखाड़ों की स्थापना प्रारंभ की। इसके बाद गुरु-परंपरा के अनुसार सैकड़ों साधु-महात्माओं और संतों ने यहाँ तपस्या की, यज्ञ किए और इस स्थल की पवित्रता को आज तक बनाए रखा है।
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